कैसे लोग आजकल भूत, भविष्य, वर्तमान को पर्चे में लिखकर बता देते हैं? यह शक्ति उन्हें कर्ण पिशाचिनी सिद्धि से प्राप्त होती है। यह अद्वितीय शक्ति यक्षिणी का ही स्त्री रूप है। यह कर्ण पिशाचिनी अपने साधक को उसके कान में आकर सामने वाले का भूत, भविष्य, वर्तमान बता सकती है। यह सिद्धि सारी सिद्धियों से जल्दी फलीभूत होती है।
इस सिद्धि को ज्यादातर अघोरी लोग ही सिद्ध कर सकते हैं, क्योंकि एक सामान्य व्यक्ति इस सिद्धि को सिद्ध नहीं कर सकता, क्योंकि वह ब्रह्मचर्य का पालन नहीं कर सकता। यह सिद्धि बहुत ही दुर्गम स्थानों में की जाती है, जैसे पर्वत, पहाड़, और शमशान। बिना गुरु की सहायता के यह सिद्धि नहीं की जा सकती, क्योंकि जरा सी भी त्रुटि होने पर कर्ण पिशाचिनी अपने साधक को पागल या फिर उसकी मृत्यु भी करा सकती है।
कर्ण पिशाचिनी कान में कुछ न कुछ फुसफुसाती रहती है और बिना गुरु के इसे शांत नहीं किया जा सकता। कर्ण पिशाचिनी सिद्धि रोज रात 12:00 बजे से शुरू होती है, और 11 दिन तक इस सिद्धि को सिद्ध करना पड़ता है। कर्ण पिशाचिनी मंत्र को 1100 बार उच्चारण करने पर कर्ण पिशाचिनी जागृत हो जाती है।
कर्ण पिशाचिनी: एक रहस्यमय सिद्धि
कर्ण पिशाचिनी एक अद्भुत और रहस्यमय सिद्धि है, जिसे विशेष रूप से अघोरी साधक अपने ध्यान और साधना के माध्यम से प्राप्त करते हैं। यह सिद्धि साधक को अद्वितीय शक्तियों से सुसज्जित करती है, जिससे वह अन्य लोगों के भूत, भविष्य और वर्तमान को जान सकता है। कर्ण पिशाचिनी का संबंध यक्षिणी के स्त्री रूप से है, और यह सिद्धि विशेषकर दुर्गम स्थानों, जैसे पर्वत, पहाड़ और शमशान में की जाती है।
कर्ण पिशाचिनी सिद्धि की विशेषता यह है कि यह साधक के कान में आकर जानकारी प्रदान करती है। जब साधक इस सिद्धि को प्राप्त कर लेता है, तो वह किसी भी व्यक्ति के बारे में उसकी पूर्व की घटनाओं, वर्तमान परिस्थितियों और भविष्य के बारे में सटीक जानकारी प्राप्त कर सकता है। यह शक्ति सामान्य मनुष्य के लिए असाधारण है और इसे प्राप्त करना अत्यंत कठिन है।
इस सिद्धि को सिद्ध करने के लिए ब्रह्मचर्य का पालन करना आवश्यक है। साधक को अपने मानसिक और शारीरिक संयम को बनाए रखना होता है। अघोरी साधक इस सिद्धि को साधना के दौरान कठिन तपस्या और ध्यान के माध्यम से प्राप्त करते हैं। बिना गुरु के मार्गदर्शन के यह सिद्धि प्राप्त नहीं की जा सकती। गुरु की उपस्थिति और उनके आशीर्वाद के बिना साधक को सही मार्गदर्शन नहीं मिल पाता, जिससे वह इस सिद्धि को सिद्ध करने में असफल हो सकता है।

कर्ण पिशाचिनी सिद्धि की एक और विशेषता यह है कि यह साधक को तंत्र विद्या के गूढ़ रहस्यों से भी अवगत कराती है। साधक को मंत्र जाप करना पड़ता है, जो इस सिद्धि को जागृत करने में सहायक होता है। कर्ण पिशाचिनी मंत्र को 1,100 बार उच्चारण करने के बाद यह सिद्धि जागृत होती है। इस मंत्र का सही उच्चारण और ध्यान अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि एक छोटी सी गलती साधक को विपरीत परिणामों का सामना करने के लिए मजबूर कर सकती है।
कर्ण पिशाचिनी साधक के लिए जीवन के कई आयामों को खोल देती है। इस सिद्धि के माध्यम से साधक अपने इर्द-गिर्द की ऊर्जा को समझने और उसे नियंत्रित करने की क्षमता प्राप्त करता है। हालांकि, इस शक्ति का दुरुपयोग करना बहुत खतरनाक हो सकता है। अगर साधक इस शक्ति का गलत उपयोग करता है, तो यह उसके लिए नकारात्मक परिणाम लेकर आ सकती है, जैसे मानसिक तनाव, पागलपन, या यहां तक कि मृत्यु।
इस प्रकार, कर्ण पिशाचिनी एक शक्तिशाली और रहस्यमय सिद्धि है, जो अघोरी साधकों के लिए एक महत्वपूर्ण साधना का हिस्सा है। यह सिद्धि न केवल अघोर तंत्र विद्या में महत्वपूर्ण है, बल्कि यह उन लोगों के लिए भी एक चेतावनी है जो अनजाने में इस प्रकार की शक्तियों का उपयोग करना चाहते हैं। सच्चे साधक को हमेशा अपने मार्गदर्शक गुरु की उपस्थिति में रहना चाहिए और इस सिद्धि का उपयोग केवल शुभ और सकारात्मक उद्देश्यों के लिए करना चाहिए।
कर्ण पिशाचिनी की गूढ़ता और शक्ति उसे एक अद्वितीय साधना बनाती है, जो साधक को आत्मज्ञान की ओर ले जाने में सहायक होती है। इस प्रकार, यह सिद्धि न केवल ज्ञान का माध्यम है, बल्कि आत्मा की गहराइयों में झांकने का एक साधन भी है।